राख के अंबारों में अपना ज़हन ढ़ूंढता फ़िरता है
कितने ख़त थे जो उसने बिना पढ़े ही जला दिये
अब तो बस मैं हूँ और एक ये मायूस सा कमरा है
जैसे किसी ने बच्चों के सारे खिलौने छुपा दिये
कितने ख़त थे जो उसने बिना पढ़े ही जला दिये
अब तो बस मैं हूँ और एक ये मायूस सा कमरा है
जैसे किसी ने बच्चों के सारे खिलौने छुपा दिये
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